Archaeology

रामसेतु (Ramsetu) का प्राचीन इतिहास

रामसेतु, प्राचीन समय में वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने माता सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए, लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने भगवान विश्वकर्मा जी के पुत्र नल और नील के द्वारा यह सेतु बनवाया था जिसे बनाने में वानर सेना ने भी सहायता की थी।

रामसेतु Ramsetu imgae
Ramsetu imgae

रामसेतु के पत्थरों का रहस्य

इस सेतु को बनाने कि लिए पानी पर तैरने वाले पत्थरों का उपयोग किया गया था जिसे किसी अन्य जगह से लाया गया था। ऐसा कहा जाता हैं कि ज्वालामुखी से उत्पन्न होने वाले पत्‍थर पानी में नहीं डूबते हैं। हो सकता हैं इन्हीं पत्‍थरों का उपयोग किया गया होगा। भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को ‘धनुषकोटि‘ कहा जाता हैं। भगवान राम ने इसी स्थान से समुद्र में यह ब्रिज बनाया था। जिसे आज हम धनुषकोटि नाम से जानते हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम ने इस सेतु का नाम ‘नल सेतु’ रखा था। वाल्मीक रामायण में यह वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन कर तैयार हो गया था जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी।

रामसेतु के समयकाल पर मतभेद

रामसेतु ब्रिज की उम्र कुछ गणनाओं के मुताबिक लगभग 1,25,000 वर्ष से 3500 वर्ष के बीच बताई जाती है। जोकि किसी तरह से रामायण के time period मेल नहीं खाती। इसी तरह 15 वीं शताब्दी के दौरान यह पुल पैदल चलने योग्य बताया जाता हैं। लेकिन 1480 ईस्वी में आये हुए एक चक्रवात में यह पुल नष्ट हो गया था और यह समुद्र में नीचे की ओर धस गया। रामेश्वरम मंदिर के रिकॉर्ड से पता चलता है कि राम सेतु एक बार समुद्र तल से पूरी तरह से ऊपर था। माना जाता हैं कि भगवान राम और उनकी वानर सेना ने इसी पुल से चलते हुए लंका तक का सफ़र तय किया था।

रामसेतु विवाद हमेशा से चर्चा का विषय रहा हैं। ऐसा कहा जाता है कि 1480 में एक चक्रवात की चपेट में आने तक इसे दोनों देशों के बीच एक जोड़ने वाले पुल के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसके कारण इसका अधिकांश भाग जलमग्न हो गया था। वर्तमान में पुल लगभग 3 – 30 फीट पानी के भीतर है और किसी भी प्रकार के उपयोग के लिए अक्षम्य है। इस ऐतिहासिक पुल का धार्मिक महत्व भी है; कई किंवदंतियाँ इसे भगवान राम और हिंदू महाकाव्य रामायण से जोड़ती हैं।

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रामसेतु पर इतिहासकारों का मत

रामसेतु का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में किया गया है, जिनमें धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ शोध पुस्तकें और मानचित्र भी शामिल हैं। धार्मिक महाकाव्य रामायण में वाल्मीकि सेतुबंधनम के बारे में भी लिखते हैं जो भारत को लंका से जोड़ता है, जो रावण का राज्य था। इस प्राचीन पुल का उल्लेख फ़ारसी भूगोलवेत्ता इब्न खोरदादेबेह ने भी बुक ऑफ़ रोड्स एंड किंगडम्स (850 ईस्वी) में किया है। इसे सेट बंधन या समुद्र के पुल के रूप में जाना जाता है। इस पुल का एक और उल्लेख उन नक्शों में देखा जा सकता है जो 1747 में एक डच मानचित्रकार द्वारा बनाए गए थे, जहाँ इस क्षेत्र को रामनकोइल यानि राम मंदिर के रूप में दिखाया गया है। यह नक्शा तंजावुर सरस्वती महल पुस्तकालय में रखा गया है। विभिन्न दशकों के दौरान तैयार किए गए कई अन्य मानचित्रों में इस क्षेत्र और स्थान का उल्लेख किया गया है।

एक डच कार्टोग्राफर ने 1747 में इस ब्रिज को RAMAN COIL यानी राम मन्दिर नाम से दिखाया था यह मैप थन्जावुर लाइब्रेरी में आज भी रखा हुआ है। समय के साथ इस ब्रिज का नाम अलग अलग resources में देखने को मिलता रहा है सबसे नवीनतम प्रमाण के अनुसार इस ब्रिज को एक ब्रिटिश कार्टोग्राफर ने ऐडम्स ब्रिज कहा है। आज वर्तमान समय में Archaeological Suvey of India ने वैज्ञानिक प्रमाण जुटाने व वास्तविकता को दुनिया के सामने लाने के लिए एक under water expeditions कराने का निर्णय लिया है। जो CSIR एवं NIO के द्वारा पूरा होगा। इन दोनों agencies का दायित्व under water resources की carbon dating करने के साथ साथ एक OVERALL STUDY तैयार करना है।

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