Sakat Chauth : कब है संकष्टी चतुर्थी? जानिए महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और चंद्रोदय का समय
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सकट चौथ का वैदिक परिचय – Sakat Chauth ka Vaidik Parichay
भगवान गणेश जिन्हें हर मंगल कार्य के प्रारंभ में पूजा जाता है। जिन्हें मानव समाज मंगलकारी मानता है। इन्हीं भगवान श्री गणेश की आराधना का दिन होता Sakat Chauth संकष्टी चतुर्थी। वैसे तो हर चंद्र मास में दो चतुर्थी आती हैं। पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी कहते हैं व शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। भाद्रपद माह में आने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में माघ माह की संकष्टी चतुर्थी को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। तो दक्षिण भारत में गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी भी कहा जाता है।
सकट चौथ का क्या है वैदिक महत्व – Sakat Chauth Ka kya hai Vaidik Mahatm
संकष्टी अर्थात संकट से मुक्ति। लोगों की मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान गणेश सारे दुखों, सारे संकटों को खत्म कर देते हैं। संकष्टी चतुर्थी यदि मंगलवार के दिन हो तो अंगारकी चतुर्थी कहलाती है जो कि बहुत ही शुभ मानी जाती है।
सारे संकटों को दूर करने के लिए माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ(sakat chauth) का व्रत किया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती हैं।
सकट चौथ पर व्रत कब रखें – Sakat chauth par vrat kab rakhen
वैसे तो हर माह संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ महीने में पड़ती है। वहीं अमांत पंचांग के अनुसार पौष महीने की चतुर्थी को सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी माना जाता है।
सकट चौथ पूजा विधि – Sakat Chauth Puja Vidhi
हिन्दू धर्म में किसी भी मंगल कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करने का विधान है। महिलाएं पूजन के समय गणेश मंत्र का जप करती हैं। गणेश मंत्र का जप करते हुए 21 दूर्वा गणेश जी को अर्पित करनी चाहिए। साथ ही भगवान गणेश को बूंदी के लड्डूओं का भोग लगाना चाहिए। नैवेध्य के तौर पर तिल तथा गुड़ से बने हुए लड्डू तथा ईख, शकरकंद, गुड़ और घी अर्पित करने की परंपरा है।संकष्टी चतुर्थी का व्रत महाराष्ट्र व तमिलनाडु में विशेष रूप से अधिक प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास रखा जाता है। इसमें केवल फल, कंदमूल व वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। साबूदाना खिचड़ी, आलू व मूंगफली आदि श्रद्धालुओं का आहार होते हैं। चंद्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास तोड़ा जाता है।
लोगों की आस्था है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से अच्दे फल की प्राप्ति होती है। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश के साथ चंद्रदेव की पूजा भी की जाती है। इस अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस दिन महिलाएं दूध और शकरकंदी खाकर अपना व्रत खोलती हैं। महिलाएं अगले दिन ही अनाज ग्रहण करती हैं।
सकट चौथ की व्रत कथा – Sakat Chauth Vrat Story
वैदिक मतानुसार , सतयुग में महाराजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहता था। पुत्र के जन्म के बाद ब्राह्मण की मृत्यु हो गई। पुत्र का लालन-पालन उसकी पत्नी ने किया और विधवा ब्राह्मणी भिक्षा मांगकर अपने पुत्र का पालन पोषण करती थी। उसी नगर में ही एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता था लेकिन उसके बर्तन हमेशा कच्चे रह जाते थे। जिसकी वजह से कुम्हार परेशान रहता था एक दिन उसने एक तांत्रिक से पूछा कि उसके बर्तन पकते क्यों नहीं हैं? इसका कई समाधान बताएं। इस पर तांत्रिक ने उसे किसी बच्चे की बलि देने को कहा। संकट चतुर्थी के दिन विधवा ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के लिए सकट चौथ का व्रत ऱखा। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी की मूर्ति को गले में डालकर खेलने चला गया और कुम्हार ने उसे पकड़ लिया और उसे मिट्टी पकाने वाले आंवा में डाल दिया। इधर उसकी माता अपने पुत्र को ढूंढने लगी, पुत्र के ना मिलने पर विधवा ब्रह्मणी गणेश जी से प्रार्थना करने लगी। रात बीत जाने के बाद सुबह जब कुम्हार पके हुए बर्तनों को देखने आंवा के पास गया तो उसने देखा कि उसमें जांघभर पानी जमा हुआ था और उसके अंदर एक बालक बैठकर खेल रहा था। इस घटना से कुम्हार डर गया और उसने राजदरबार में जाकर सारी आपबीती सुनाई।
तब राजा ने अपने मंत्रियों को भेजा ताकि वह पता लगा सके कि यह पुत्र किसका और कहां से आया है? जब विधवा ब्राह्मणी को पता चला तो वह अपने पुत्र को लेने तुरंत पहुंच गई। राजा ने वृद्धा से पूछा कि ऐसा चमत्कार हुआ कैसे? तो वृद्धा ने बताया कि उसने सकट चौथ का व्रत रखा था और गणेश जी की पूजा-अर्चना की थी। इस व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र के पुन: जीवनदान मिला है। तब से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं। जो अभी तक सर्वमान्य एवं प्रचलित भी है ।
-: सकट चौथ का मुहूर्त 2021 :-
सकट चौथ रविवार, जनवरी 31, 2021 को
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 08:29 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 31, 2021 को 08:24 पी एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – फरवरी 01, 2021 को 06:24 पी एम बजे
वैदिक परिवार की ओर से आप समस्त पाठकों को सकट चौथ के पावन पर्व की बहुत बहुत मंगलकनाए। आपका यह पर्व मंगलमय व्यतीत हो हम ऐसी कामना करते हैं। Happy Sakat Chauth
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